हिंदी की मिठास उसका माधुर्य केवल सम्प्रदाय विशेष के बंधनों में न बंधा रह सका ,जब वह मुसलमान विद्वान अब्दुर्रहीम खानेखाना के हाथ पहुची तो उसका अंदाज़ सूफियाना हो गया ,जिसको सुननेवाले उसके श्रोता साम्प्रदायिक न होकर बल्कि पंथनिरपेक्षता के भाव से लबालब भर उठे ।
हिंदी भाषा की ज्ञानराशि स्वभावतः देवनागरी लिपि में निबद्ध है इस लिपि में स्वर और व्यंजन के बीच स्पष्ट अंतर है जो रोमन लिपि में नही पाया जाता।
इसीलिए तो संत विनोबा भावे ने इसे महत्ता के आधार पर ‘विश्वनागरी’ कहा था । हिंदी भारत के स्वाधीनता संग्राम में देश की वाणी बनी । गांधीजी ने माना था कि केवल हिंदी ही भारत की हिंदुस्तानी भाषा हो सकती है वर्धा में उन्होंने हिंदी प्रचार समिति स्थापित की । जिसे बाद में जुलाई 1936 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति नाम दिया गया और बाबू राजन प्रसाद इसके अध्यक्ष बने ।
हिंदी के विश्वव्यापी फैलाव को चिरस्थायी रखने में प्रयाग की धरती भी अतुलनयी रही है । यही पर महामना मदन मोहन मालवीय व राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के प्रयास से 1911 में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई ।
जो पंत, निराला, महादेवी की काव्यधारा के संगम के प्रवाही परंपरा को आज भी जीवंत रखे हुए है ।
धर्मवीर भारती , बच्चन, अमरकांत, उपेन्द्रनाथ अश्क़, रामकुमार वर्मा , गोपीकृष्ण गोपेश, उमाकांत मालवीय ‘अमौसा का मेला’ और ‘कचहरी’ जैसी कवितायों के जरिये मानवीय संवेदनाओ को उकेरने वाले कैलाश गौतम सरीखे कवियों की धरती भी यही प्रयाग ही रही है। इसी धरती से जुड़े व संगम की रेती से विशेष स्नेह रखने वाले ललित निबंधकार विद्यानिवास मिश्र को कैसे विस्मृत किया जा सकता जिनकी लेखनी की धमक विदेशो तक थीं, वहीं त्रिवेणी की संगमी परम्परा में ख़ुद को महसूस करने वाले राजेन्द्र यादव , मनु भण्डारी जिनकी लेखनी ने विदेशो में भी हिंदी के मिठास के जरिए संगम की सुगंध को बिखेरे रखा है, वहीं अपने विश्वविधालय के आचार्य मोहन अवस्थी सर को आज हर शहरवासी दिल से प्रणाम कर रहा हैं जिनकी लेखनी का मै विशेष रूप से कायल रहा हूं, अवस्थी सर ने तो अनुगीत , नवगीत के रूप में एक नई विधा हिंदी को दिया , उनकी इस साधना ने हिंदी के विश्वव्यापी फैलाव को एक नई दिशा दी ।
चीन ,जापान, रुस और फ्रांस की तरक्की का मूल कारण उनकी राष्ट्रभाषा है।
हिंदीविद प्रोफेसर रूपर्ट स्नेल के शब्दों में , ‘हिंदी जिंदगी है,हिंदी जिंदा है , भारत की भाषा है,हिंदी मेरी है , और हिंदी सबकी है ।’ शरदेंदु सौरभ। अधिवक्ता माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ( युवा लेखक व कॉलमिस्ट ) मो... 7388563426